सुप्रीम कोर्ट ने वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने की याचिका पर नोटिस जारी किया जानने के लिए लिंक पे क्लिक करे 

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कोर्ट ने कहा कि "किसी भी क्षेत्र में कानून और व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने की जिम्मेदारी के साथ प्रशासनिक अधिकारियों की होती है और वो अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए बाध्य होते हैं और उन्हें ये सुनिश्चित करना होता है कि क्षेत्र की शांति और व्यवस्‍था भंग न हो और अगर किसी घटना के संबंध में कोई तनाव या विवाद हो तो उस पर सुलह और समझौता किया जा सकता है। इस प्रकार, उन पर तनाव कम करने और यह सुनिश्चित करने के जिम्‍मेदारी होती है कि क्षेत्र में शांति बनी रहे।" अदालत ने ध्वनि प्रदूषण और इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और शांति होने वाले नुकसान पर कहा- "... भारत में लोगों को इस बात का एहसास नहीं है कि शोर अपने आप में एक प्रकार का प्रदूषण है। वे स्वास्थ्य पर इसके बुरे प्रभावों को लेकर पूरी तरह से सचेत भी नहीं हैं। हालांकि हाल के दिनों में इसके बारे में कुछ चिंता दिखाई दी है। " कोर्ट ने कहा कि, दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, विशेष रूप से अमेरिका, इंग्लैंड और ऐसे अन्य देशों में, लोग ध्वनि प्रदूषण को लेकर काफी सचेत हैं और वे अपनी कारों के हॉर्न भी नहीं बजाते हैं और हॉन्‍किंग को बुरा व्यवहार माना जाता है, क्योंकि इससे न केवल दूसरों को असुविधा होती है बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान होता है। ध्‍वनि प्रदूषण (V), IN RE, 2005 (8) SCC 796 के नियमों में कहा गया है और जहां सुप्रीम कोर्ट ने राय दी है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत अभिव्यक्ति की आजादी आजादी किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, हालांकि ये निरपेक्ष नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपनी आवाज़ को बढ़ाने के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को अपना मौलिक अधिकार बताने का दावा नहीं कर सकता क्योंकि प्रत्येक नागरिक को अपने घर में आराम और शांति से रहने का मौलिक अधिकार है। "सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य हो चुका है कि शोर मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभावित डालता है। शोर बहरेपन, उच्च रक्तचाप, अवसाद, थकान और झुंझलाहट का कारण हो सकता है। अत्यधिक शोर से हृदय संबंधी बीमारियों, न्यूरोसिस और नर्वस ब्रेकडाउन जैसी ब‌ीमारियां हो सकती हैं। हाईकोर्ट ने कहा, हमारा स्पष्ट मत है कि कोर्ट को अपने असाधारण क्षेत्राधिकार को प्रयोग करते हुए इस मामले में किसी तरह के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, ऐसा करने से सामाजिक असंतुलन पैदा हो सकता है, । उल्‍लेखनीय है कि पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य में डीजे के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था।


सौजन्य से - लाइव लॉ